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एक उदास गीत / श्रीविलास सिंह

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कई बार
मन होता है कि
किसी मुलायम हरे पत्ते पर
लिख दिया जाय
तुम्हारा नाम
जो मुलायम है
उस पत्ते की ही तरह।
नदी के किनारे बैठ
देर तक गाया जाए
चैत का पुराना उदास गीत,
पानी की सतह को
छू कर उड़ गई चिड़िया
हो जाये मेरा उदास मन,
चैत के उस गीत जैसा ही।
मन करता है कि
बदरंग धरती पर
भर दिए जाएँ रंग
तमाम बनफूलों के
और बादलों को
टांक दिया जाए
मौसमों की चौखट पर।
प्रेम ऐसे किया जाय कि
किसी बूढ़े पहाड़ की चोटी से
सीने भर सांस के साथ
जोर से पुकारा जाए
तुम्हारा नाम
और तुम बिखर जाओ
पूरी घाटी में
सतरंगी तितलियों की तरह।