Last modified on 4 फ़रवरी 2021, at 01:00

एक उदास गीत / श्रीविलास सिंह

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:00, 4 फ़रवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीविलास सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कई बार
मन होता है कि
किसी मुलायम हरे पत्ते पर
लिख दिया जाय
तुम्हारा नाम
जो मुलायम है
उस पत्ते की ही तरह।
नदी के किनारे बैठ
देर तक गाया जाए
चैत का पुराना उदास गीत,
पानी की सतह को
छू कर उड़ गई चिड़िया
हो जाये मेरा उदास मन,
चैत के उस गीत जैसा ही।
मन करता है कि
बदरंग धरती पर
भर दिए जाएँ रंग
तमाम बनफूलों के
और बादलों को
टांक दिया जाए
मौसमों की चौखट पर।
प्रेम ऐसे किया जाय कि
किसी बूढ़े पहाड़ की चोटी से
सीने भर सांस के साथ
जोर से पुकारा जाए
तुम्हारा नाम
और तुम बिखर जाओ
पूरी घाटी में
सतरंगी तितलियों की तरह।