भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ईश्वर / राजेश कमल
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:39, 6 फ़रवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेश कमल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हे ईश्वर!
तुम्हारे पास तो रंग बिरंगे पोशाक थे
स्वादिष्ट मिठाइयाँ थीं
रसीले पकवान थे
महल भी आलीशान थे
तस्वीरें तो यही बताती हैं
किताबों में यही लिखा है
ज्ञानियों ने भी ऐसा ही कहा है
फिर
तुमने जो बनाई दुनिया
वहाँ जो रहे इंसान
क्यूँ रहे नंगे
क्यूँ खाया कंदमूल
क्यूँ भटके जंगल-जंगल
अगर सब तुम्हारा ही माल था
तो ये क्या कमाल था
सच सच बताना ईश्वर
दुनिया तुम्हारी ही रचना है
या तुम दुनिया की रचना हो।