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अतीत / लुइस ग्लुक / श्रीविलास सिंह

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आकाश में प्रकट होता है नन्हा प्रकाश
एकाएक देवदार के दो वृक्षों के मध्य से,
उनके महीन काँटों के मध्य से
जो अब अंकित है
इस जगमग सतह पर और
इस ऊंचे, परदार स्वर्ग के ऊपर
सूंघो इस हवा को। यह महक है श्वेत देवदारु की, सबसे सघन जब हवा बहती है इनके मध्य से और यह करती है जो ध्वनि है और भी विचित्र,
किसी फिल्म में हवा के स्वर की भाँति

गतिशील हैं परछाइयाँ। रस्सियाँ कर रही हैं आवाज जो वे करती हैं। जो तुम सुन रहे हो अब होगी बुलबुल की आवाज़, कॉर्डेटा, नर पक्षी रिझा रहा मादा पक्षी को

रस्सियाँ जगह बदलती हैं, हवा में
झूलता है झूला, बंधा हुआ कस कर दो देवदारु वृक्षों के बीच।
सूंघो हवा को। वह है श्वेत देवदार की गंध।
यह है मेरी माँ की आवाज़ जो तुम सुनते हो
या फिर है यह एक मात्र ध्वनि जो निकलती है वृक्षों से
जब हवा गुजरती है उनके मध्य से,
क्योंकि क्या आवाज़ करेगी यह
गुजरते हुए शून्य से?