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उसने इतना तो सलीका रक्खा / ज्ञान प्रकाश विवेक

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उसने इतना तो सलीका रक्खा
बंद कमरे में दरीचा रक्खा

तुमने आँगन में बनाई गुमटी
मैंने छोटा-सा बगीचा रक्खा

गीत आज़ादी के गाये सबने
और पिंजरे में परिंदा रक्खा

उसने हर चीज़ बदल दी अपनी
जिस्म का घाव पुराना रक्खा

घर बनाने के लिए पक्षी ने
चार तिनकों पे भरोसा रक्खा

उसने जाते हुए अश्कों से भरा—
मेरे हाथों पे लिफ़ाफ़ा रक्खा.