अनुशंसा का पत्र / येहूदा अमिख़ाई / श्रीविलास सिंह
गर्मियों की रातों में मैं सोता हूँ नग्न
येरुशलम में । मेरी चारपाई
होती है एक गहरी घाटी के कगार पर
बिना उसमें लुढ़के हुए ।
दिन के समय मैं टहलता हूँ इधर-उधर
मेरे होठों पर होते हैं दस धर्मादेश
किसी पुरानी धुन की तरह जिन्हे गुनगुनाता है कोई अपने आप में ।
ओह छुओ मुझे, छुओ मुझे प्रिय स्त्री !
नहीं है वह चोट का निशान जिसे तुम महसूस कर रही हो मेरी कमीज़ के नीचे
वह है अनुशंसा का एक पत्र, कसकर मोड़ा हुआ,
मेरे पिता का :
“ जो भी हो, वह एक अच्छा लड़का है, भरा हुआ प्रेम से ।”
मैं स्मरण करता हूँ अपने पिता का — मुझे जगाते हुए भोर की प्रार्थनाओं हेतु ।
वे किया करते थे ऐसा धीरे-धीरे मेरा माथा सहला कर कोमलता से, न कि
खींच कर ज़ोर से हटाते हुए मेरा कम्बल ।
तभी से मैं प्यार करने लगा हूँ उन्हें और भी अधिक।
और अपने पुरस्कार स्वरूप, संभवतः वे जगाए जाएँ
कोमलता और प्रेम से
पुनर्जीवन के दिन ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह