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किछु प्रेम कविता / दीप नारायण

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01.
एकटा बरफ खाइत बच्चा
अबैछ घर जखन
बाँचल रहैछ
ओकरा लकटीमे बरफ जतेक

बस!
ओतबे जग्गह चाही
हृदयमे प्रेमक लेल।

02.
जखने अहाँ ककरो सँ
कहैत छियैक

'हम अहाँसँ प्रेम करैत छी'

अहाँ अपन सम्पूर्ण आजादी
समाप्त क' दैत छियै।

03.
'हम अहाँसँ प्रेम करैत छी'

एकर सोझ-सोझ मतलब छैक
अहाँ हमरासँ
बेसी महत्पूर्ण छी।

04.
प्रेम एकटा ज़हर छैक
बहुत मीठ ज़हर

प्रेममे जा धरि
स्वंयकेँ अहाँ
मेटा नै दै छियै
बूझिए ने पेबै अहाँ
प्रेम केँ।

05.
एकटा अनाम
अदृश्य शक्ति
हमरा-अहाँ केँ
भेंट-घाँट करओलक

साइत,
पूर्व जन्मक प्रेम
शेष छल।

06.
हम सोचैत रही

अहाँ बिहुँस जाएब
बदाम जका
हमर साँसक उष्मा आ
ठोढ़क नमी पाबि

मुदा,
ई कि हमर प्रेमक आगा
ओछ भ' गेल आँचर अहाँक।

07.
अहाँक मान
अहाँक अपमान
अहाँक प्राण

छूबि क' देखियौ
हृदयसँ हृदयकेँ

प्रेम करब कोनो 'गुनाह' नै छै।

08.
अत्माक बीचोबीच
बरलै, एक दिन
प्रेमक दूधिया ज्योति

आ छिड़िया गेलैक
जीवन हमर
इंद्रधनुष जकाँ
सात रंग मे।

09.
सुनै छियैक-
प्रेम कहियो खतम नहि होइत छैक
रूप बदलि-बदलि क'
अबैत छैक जीवन मे

छत के मुँडेर पर
पाँखि कोरियबैत फुद्दी
कहि हमर प्रेम त' नहि।

10.
हम किछु बाजी
वा कि अहीं
कोनो खगता नहि

अहाँ देखैत रही हमरा
आ हम अहाँक एकटक
बिनु शब्द आ भाषा केँ
होबय दियौ प्रेम।

11.
अहाँक संग भेंट-घाट
अहाँक संग गप्प-सप्प
अहाँ हाथक-
तीमन-सोहारी

हमरा लेल
उत्सव।

12.
रेलक पटरी
एक-दोसराक
दुःख केँ बुझैत त' छैक

मुदा,
दुनू मिलैत नहि छैक केखनो

जेना,
एखन
हम आ अहाँ।

13.
नहि चाही हमरा
धन-संपत्ति
नाम
इज्जति
सोहरति

इश्वर!
हमरा दिय
हमर प्रेमक सामर्थ्य।

14.
जेना कविता में रहैत अछि कविता
रौद में गर्माहटि
इजोरिया में इजोत
फूल में सुगन्धि
मउध में मीठ

घामक बुन्नी में मिज्झर रहैछ जेना नोन
हरियर पात में क्लोरोफिल
जेना गम्हड़ायल गहूँम में दूध

गाम में जुगो-जुग सँ अबैत
लोक कथा रहैत अछि जेना

कोनो बेदराक तोतराइत बोली मे
जेना रहैत अछि माय

तहिना हमरा में अहाँ
आ अहाँ में हम
शब्द में अर्थ आ
भाषा में व्याकरण जकाँ।