Last modified on 24 फ़रवरी 2021, at 15:52

रात भर / नरेश सक्सेना

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:52, 24 फ़रवरी 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रातभर चलती हैं रेलें
ट्रक ढोते हैं माल रातभर
कारख़ाने चलते हैं

कामगार रहते हैं बेहोश
होशमन्द करवटें बदलते हैं रातभर
अपराधी सोते हैं
अपराधों का कोई सम्बन्ध अब
अन्धेरे से नहीं रहा

सुबह सभी दफ़्तर खुलते हैं अपराध के।