Last modified on 27 फ़रवरी 2021, at 00:21

मम्मी से सवाल / राम करन

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:21, 27 फ़रवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम करन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <po...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जी करता है, बैठ किसी दिन
मम्मी को समझाऊँ।
‘त धिन, तक धिन, त थई’
कुचिपुड़ी सिखलाऊँ।।

जो भी बढि़या काम करूं मै,
उसमें खोट दिखाती हैं।
मेरी रूचियां, मेरे शौक
सबमें ‘टाँग’ अड़ाती हैं।।

जब मै चाहूं पार्क घूमना
मुझको बिठला देती हैं।
जब मै उनकी बात सुनूँ न
पट ‘गन्दी’ कह देती हैं।।

‘ये मत करना, वहाँ न जाना,
हरदम बैठी पढ़ा करो।
हँसना और फुदकना छोड़ो,
थोड़ा संयत रहा करो।।

अगणित उनके पाठ तजुर्बे,
बिन पुस्तक बतलाती हैं।
मै सुनते सो जाती हूँ,
उनको नींद न आती है।।
सोंचा कह दूँ, ‘पर मम्मी,
कभी तो तुम भी बच्ची थी।
कहो तो पुछूँ मै नानी से,
तब क्या ऐसे अच्छी थी?

पर डरती हूँ, कहीं न मम्मी,
कह दें, ‘हिस्ट्री याद करो।
बक-बक करना फिर दादी सी
प्रथम गणित की बात करो।।

अन्दर से बस्ता ले आओ,
अंक-पत्र दिखलाओ।
जो-जो प्रश्न नही हल की थी
बैठ वही दुहराओ।

आते होते प्रश्न कहीं तो,
क्या मै उस दिन रोती?
टेढ़ी खीर उन्हे समझाना
काश वो ‘बच्ची’ होती।।