Last modified on 27 फ़रवरी 2021, at 00:22

गुड़ / राम करन

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:22, 27 फ़रवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम करन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <po...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चींटी चाट रही थी गुड़,
रस पीती थी सुड़-सुड़-सुड़।
इतना पी, इतना पी वह,
पेट लगा करने गुड़-गुड़।

तब तक निकली तिलचट्टी,
वह भी फूली खाकर गुड़।
हट्टी-कट्टी खूब हुई,
नही सकी पर वापस मुड़।

हवा लगा जब गुड़ को तो,
हुआ चिपचिपा गीला गुड़।
बढ़ा जायका लेकिन तब
चट्टर-पट्टी जैसा गुड़।

मच्छर जी ने देखा जब,
सोंचा - खाएं हम भी गुड़।
जैसे बैठे चिपके पँख,
फिर वे कभी न पाए उड़।