भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
परनानी / राम करन
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:22, 27 फ़रवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम करन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <po...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रानी पहुंची नानी घर,
बोली जिद मनमानी कर
कैसी थी नानी की नानी?
चल नानी परनानी घर।
नानी बोली - रानी सुन,
हो गई बात पुरानी पर।
घर होते हैं कई तरह के,
होती एक सी नानी पर।
हठ ना छोड़ी रानी जब,
मानी नही कहानी पर।
नानी बोली - मेरी नानी,
गई घूमने नानी घर।