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अनगढ़ कवि / देवेश पथ सारिया

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कभी लिखूंगा इस तरह कविता
कि अनछुए रह जाएंगे बीच के आयाम

कभी इस तरह कि चाहूंगा कह देना
आदि और अंत
सभी कुछ बीच का भी
बाक़ी रह जायेगी गुंजाइश फ़िर भी
पूर्णांकों को दशमलव संख्या बनाए जा सकने की

कभी करूंगा बात सिर्फ दशमलव बिंदु के इर्द-गिर्द
बात किसी एक संख्या
या बहुत सी तितर-बितर पड़ी संख्याओं की
जिसमें खोजी जा सकेंगी सिरों की संख्याएं और तारतम्य
अनुपालन किसी गणितीय प्रमेय, श्रेढ़ी या सूत्र का

भूलकर कभी सारा गणित, सारी भाषा
शुरू करूंगा हर्फ़ और हिज़्ज़े से सफ़र

घूमते चाक पर गीली कच्ची मिट्टी से स्वच्छंद खेलता
रहूंगा मैं अनगढ़ कवि ही