भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नेपथ्य से संगीत / देवेश पथ सारिया
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:30, 27 फ़रवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवेश पथ सारिया |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कान में बांसुरी की तरह
बजती रही तुम्हारी पुकार
शुक्र नेपथ्य में छूट गया था कहीं
रण कर्कश दुंदुभी के शोर के बीच
मैं सिर पर शौर्य पताका ताने
सूर्य-सा चमकता खड़ा था
मृत्यु के अँधेरे कोलाहल में
इस विभीषिका में
बांसुरी के संगीत की रौ में
आंखें मूँद बह जाने का अर्थ होता
तीर का गले को बींधते चले जाना
बांस की धुन पर
थिरकती रही तलवार