मोती दान किए / पंकज परिमल

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रोग, शोक, विपदा, भय, संकट
भेंटें आन हिये
हमने-तुमने, किसी जनम में
मोती दान किये

ऐसे सखा-सहोदर वाले
अब संबंध कहाँ
आज मिले, कल बिछुड़े, स्थायी
अब अनुबंध कहाँ

धन्यवाद, दुविधाओ ! तुमने
साथ निबाहा जो,
बिना द्वंद्व-दुविधा के हमने
पल भी कौन जिये

बासन अगर न रीते तो फिर
पुनः भरे कैसे
कुछ पहेलियाँ काले आखर
हमें लगे भैंसे

क्या सुननी, क्यों सुननी जग की,
उँगली कान दिये

ऋण में से भी धन के जैसी
ख़ुशबू आ जाती
घी पीकर अब किसे चुकाना
क्यों फाड़ें छाती

क़िस्त दिलाकर याद व्यर्थ क्यों
तुमने खून पिये

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