वेद मंत्रों से न कम हो, साँस में अब धारती हूँ।
तुम नहीं थी कुछ नहीँ था, सत्य यह स्वीकारती हूँ।
ब्रह्म-से तुम, जीव सी मैं,
बस तुम्हारा प्रतिफलन हूँ।
मैं तुम्हारे नेह बल का,
जन्मना इक संकलन हूँ।
जीत का पर्याय हूँ मैं, मात्र तुमसे हारती हूँ।
तुम नहीं थे कुछ नहीँ था, सत्य यह स्वीकारती हूँ।
हो गया इतना बलित मैं,
बस तुम्हारी अर्चना से।
झर गई हर गृद्ध लिप्सा,
सद्य मेरी चेतना से।
नय तुम्हारा पा गयी हूँ, छल मृषा संहारती हूँ।
तुम नहीं थे कुछ नहीँ था, सत्य यह स्वीकारती हूँ।
धार्य जग में एक तुम हो,
आत्मा यह जानती है।
जागतिक यह हर गणन को,
आज मिथ्या मानती है।
प्राण तुमने ही दिया है, प्राण तुम पर वारती हूँ।
तुम नहीं थी, कुछ नहीं था, सत्य यह स्वीकारती हूँ।