Last modified on 5 मार्च 2021, at 01:57

तुमने अपने पिता को खोया कभी ? / जमाल सुरैया / निशान्त कौशिक

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:57, 5 मार्च 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुमने अपने पिता को खोया कभी ?
मैंने खोया है एक दफ़ा और मैं अन्धा हो गया

उन्होंने पिता के बदन को धोया और कहीं ले गए
मुझे उनसे यह उम्मीद न थी

तुम कभी तुर्की हमाम में गए हो ?
मैं गया था एक दफ़ा
एक फ़ानूस जल उठा था
मेरी एक आँख उसमें ख़राब हुई और मैं अन्धा हो गया

उन तुर्की हमामों में लगे पत्थर
वे पत्थर आईने के मानिन्द साफ़ थे
मैंने उनमें अपना अक्स देखा
मेरा चेहरा निहायत बदसूरत दिख रहा था
मुझे ख़ुद के चेहरे से यह उम्मीद न थी सो मैं अन्धा हो गया

तुम कभी आँख में साबुन लग जाने से रोए हो ?

मूल तुर्की भाषा से अनुवाद : निशान्त कौशिक