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नवल हरित रूप / अनुराधा पाण्डेय

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नवल हरित रूप, पादप छटा अनूप, गुनगुनी ओढे धूप, आया ऋतुराज है।
हर्ष पर्व चहुँ ओर, प्रीत गीत गाए मोर, प्रणय पवित्र डोर, उर बजे साज है।
मगन मदन नृत्य, बना रतिके का भृत्य, मिलन मृदुल कृत्य, लगता ज्यों आज है।
मादक है मधुमास, कण-कण में उजास, चहुँ ओर लास्य हास, प्रेम का ही राज है।