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मेरे दौर की लड़कियाँ / श्रीविलास सिंह

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सोचता हूँ
यदि फिर लिखूँ कविता आज
अपने दौर की लड़कियों के बारे में
तो किस तरह लिखूँगा

उन्ही लड़कियों के बारे में
जिन्हें कभी लिखा था चाँद
और गुलाब और मिश्री की डली
जिनके लिए लिखे थे तमाम प्रेमपत्र
जो रह गए बिना पोस्ट किए ही
चक्कर काटे थे तमाम अनाम गलियों के
और स्वप्नों में रंग झिलमिलाए थे
जिनके लाल, गुलाबी, धानी और पीले दुपट्टों के
गदहपचीसी की उम्र में कविताएँ लिखकर जिनके लिए
पाई थी दोस्तों की तारीफ
दोस्त भी जिन्हें देखा करते थे चोरी-चोरी

मेरे दौर की लड़कियों ने भी
देखे होंगे सपने
लिखे होंगे प्रेमपत्र और
कविताएँ भी
जो रह गए होंगे अधिकांशतः बिना पोस्ट किए और
कविताएँ अनसुनी
जीवन की उन्ही विद्रूपताओं में खोकर
क्या रहा होगा उनमें कोई प्रेमपत्र,
कोई कविता मेरे लिए भी ।

निश्चय ही कुछ सपने हुए होंगे पूरे
कुछ प्रेमपत्र पहुँच गए होंगे सही ठिकानों पर
कुछ के हिस्से आया होगा उनका प्रेम
पढ़ी गई होंगी ज़रूर कुछ कविताएँ
और कुछ आज भी खिल जाती होंगी
मन के आँगन में गुलाब की तरह

जीवन की इस आपाधापी में
उन्होंने भी पाया होगा बहुत कुछ
खोकर बहुत कुछ कोमल और सरस
जीवन को जीवन बनाने के सँघर्ष में
वे भी हुई होंगी जर्जर मेरी ही तरह
 
मेरे दौर की लड़कियाँ
जो कभी मुस्कराया करती थीं
दाँतो में दुपट्टा दबाकर और
हो जाया करती थीं सिन्दूरी न जाने क्यों कभी-कभी
मिल जाएँ अगर आज
तो ज़ोर का ठहाका लगाएँगी मेरी कविता पर
और देर तक हंसती रहेंगी।
फिर होने पर अकेली चुपके से पोछ लेंगी
वह एक बून्द जो आ गई थी
पलकों के किनारे तक ।

मेरे दौर की लड़कियाँ भी क्या
कहीं लिख रही होंगी कविता
मेरे लिए ।

मेरे दौर की लड़कियों ने
खोले थे भविष्य के लिए नए गवाक्ष
टकराई थीं उन दीवारों, उन वर्जनाओं से
जो टूटते-टूटते भी बची रह गई थीं
उनके रास्तों में
उन्होंने भी तोड़े थे चक्रव्यूह के कई द्वार
जीवन को बनाया था जीने लायक
उस आधारशिला पर
खड़ी की थी मजबूत अट्टालिका
जो रखी थी उनकी पूर्वजाओं ने

मेरे दौर की लड़कियों ने
अपने दौर को ज़िन्दा रखा
तब-जब देखे जा रहे थे नई दुनिया के स्वप्न
जब चीज़ें बदल रही थीं विद्युत-गति से
बदला था उन लड़कियों ने भी ख़ुद को
और साबित किया था ख़ुद को
बेहतर आधे के ही रूप में नहीं
बेहतर पूरे के रूप में भी

मेरे दौर की लड़कियों ने ही
सँवारा आज के दौर को
रीढ़ बनकर खड़ी हुईं
आज की लड़कियों के पीछे
और लड़कों के भी
जब भी हम हुए कमज़ोर
इन्ही की बाहें बनी रथ की धुरी
आखिर वे कैकेयी की वंशजाएँ जो थीं
उन्हें आता था अपने हक के लिए आवाज़ उठाना ।

मेरे दौर की लड़कियों ने
लिखी कविताएँ भी
और प्रेम भी किया ।