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अवगाहन करूँ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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1
तुम्हारे नैन
गहरी झील -जैसे
डूबना चाहूँ।
2
पावन मन
निर्मल नीर-भरी
पहाड़ी झील।
3
 क्या कुछ हुआ!
ओ री झील! तुझको
किसी ने छुआ!
4
विरल यहाँ,
समझेंगे कभी न
झील- सा मन।
5
अम्बर झाँका
झील का कोरा मन
चिहुँका- काँपा।
6
तू मेरी झील
अवगाहन करूँ
सौ-सौ जनम।
7
सिहरी झील
प्रिय नील नभ को
अंक लगाया।
8
युगों-युगों से
तरसा झील- नीर
कोई तो पिए!
9
चाँद चुपके
उतरकर झील में
डूबे-नहाए।
10
बैठा है यक्ष
रूप- झील मोहक
छूने न दे ।