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आँसू की लिपि / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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11
की प्रार्थनाएँ
देव हुए बधिर
सुने न एक।
12
मुक्ति न यश
प्रियवर का सुख
एक ही चाह
13
मैं वीतराग
कुचले रूप-रंग
बची है भस्म।
14
साथ चले हैं
सुख-दु:ख मिलके
दु:ख ही बचा।
15
सुख आया था
रुकता भी कैसे वो
उन्हें न भाया।
16
आँसू की लिपि
वे पढ़ेंगे न कभी-
आँखों से अंधे।