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किरण-मजूरिन / मोहन अम्बर

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रवि चरखे पर सूत कातने वाली किरण मजूरिन सुन,
तुझसे हारे मन्दिर-मस्जिद तुझसे हारे निगुन-सगुन।
पंडित और मौलवी तुझको धर्म स्वरों में पहुंनाते,
बगियों के सब फूल वंदना में गंधायन बन जाते,
खेतों और खदानों से श्रम रक्त अर्घ पहुँचाता हैं।

तेरा स्वेद पूजने पौधे ओस-कणों को लेते चुन,
रवि चरखे पर सूत कातने वाली किरण मजूरिन सुन।
नटखट बालक बादल द्वारा तेरी कतन बिगड़ती है,
इस पर कुढ़ी पड़ोसिन जैसी आँधी तुझसे लड़ती है,
पर तेरा गाम्भीर्य धन्य है फिर भी हाथ सर्जन रत हैं।

तुझसे सीख रही है दुनियाँ कर्मठता का मोटा गुन,
रवि चरखे पर सूत कातने वाली किरण मजूरिन सुन।
याद तुझे आती उषा की तरूण हथेली की अरूणा,
लेकिन अपनी जर्जरता पर तू न कभी भरती करूणा,
ज्ञात तुझे जीवन रूई का बनना और बिगड़ना क्या?

समय पिंजारा बड़ा करू है बड़े करीने देता धुन,
रवि चरखे पर सूत कातने वाली किरण मजूरिन सुुन।
तू कत जाती सूत चदरिया बुनता बुनकर नील गगन,
रँगरेजिन संध्या रँग देती सीती दर्जिन-रात रतन,

धरती ओढ़ लोरियाँ गाती मेहनत सुख से सोती है।
उस लोरी का साथ निभाती तानपुरे-सी झींगुर झुन,
रवि चरखे पर सूत कातने वाली किरण मजूरिन सुन।