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खो गए थे तुम उजाले में / कुमार शिव
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खो गए थे तुम उजाले में
तुम्हें पाया अन्धेरे में !
रेशमी स्पश॔ केशों के
किए अनुभूत मैंनें
चख लिए हैं शाख पर ही
रसभरे शहतूत मैंने
गन्ध में डूबी हुई थी शीश तक
याद की काया अन्धेरे में !
रास्ता अवरुद्ध था लेकिन
सुरंगें सामने थीं
पेड़ पर लटकी हुई नीली
पतंगें सामने थीं
क्या हुआ मुझको मैं अपना
ढूँढ़ता साया अन्धेरे में !