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प्रेम-भंवर / जटाधर दुबे

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हमरोॅ सामने एक मंज़िल छेलै,
रस्ता केॅ फूल-कांटोॅ से बेफिकर
अचानक कोय शीतल एहसास होलै,
हड़बड़ाय केॅ गति होय गेलै तेज।

कानोॅ में तबेॅ गूंजै लागलै,
अनेकानेक वाद्य यंत्रोॅ के संगीत
हवा के सरसराहट, बारिश के बौछार,
सब्भैं सुने लागलै नया-नया गीत।

कोयल के कूक ने दै लागलै हूक,
मैना के बोली ने देलकै सुकून
मोॅन होय गेलै पीपरोॅ के पŸाा,
थरथर कांपे लागलै आहट महीन।

हम्में तेॅ रुकलौं कि साथी एक मिललै,
जीवन के दरिया केॅ मन्द होलै धारा
साथी तोंय साथें-साथें चलतें नै थकिहोॅ,
प्यार केॅ है फुहार नै मिलतै दुबारा।

हमरोॅ मंज़िल तोरोॅ मंज़िल नै हुअे पारलै,
बीच्चै में दोस्त बोलोॅ डहरैलेॅ तोंय केन्हें?
टूटलोॅ हृदय लैकेॅ मंज़िल केना केॅ पैबे,
प्रेम-भंवर में जीवन छोड़ी देल्हे कैन्हें?