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काकी, तोंय कानै छोॅ कैन्हेॅ? / जटाधर दुबे

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तोरा तेॅ छौं, छोॅ-छोॅ बेटा, सब एका पर एक,
तैयोॅ तोहें दुःखी छोॅ कैन्हेॅ?
काकी तोंय कानै छोॅ कैन्हेॅ?

एŸोॅ बड़ोॅ घोॅर छौं तोरोॅ, एŸोॅ बड़ोॅ आहाता,
नौकर-चाकर भरलोॅ यहाँ, तरकारी सब सस्ता,
दूध-दही खूबे मीलै छौं, भरलोॅ छौं गोहाल
एक्के मालकिन तोहीं यहाँ छोॅ, रहोॅ खूबे निहाल।
सुख में दुख लानै छोॅ केन्होॅ?
काकी, तोंय कानै छोॅ कैन्होॅ?

की कहलोॅ, काका रोॅ मनो में रहिये गेलै आस,
बेटा हाथें पानी मिलतै मिटतै आख़िर में प्यास!
पानी नै देलकै की भेलै, मुंहो में आगिन तेॅ देलकै
जिन्दा में सेवा नै केलकै, मरला बाद तेॅ केलकै
ई सब में भरमाय छोॅ केन्हेॅ?
काकी, तोंय कानै छोॅ कैन्हेॅ?

बड़ी भाग छौं, बेटा सब्भैं,
खूबेॅ धोॅन कमैलखौं
सब्भै अलग-अलग शहरोॅ में
पक्का घोॅर बनैलखौं
छोड़ोॅ गाँव केॅ सुस्त जिन्दगी,
जाय रहोॅ शहरोॅ में
पैदल चलबोॅ छूटी जैथौं,
घूमभेॅ बस कारोॅ में।

पोता-पोती खूबेॅ मानथौं,
तों घबराय छोॅ केन्हेॅ?
काकी, तोंय कानै छोॅ कैन्हेॅ?

गप्प वहाँ छोटकी, हरिया, गुड़िया,
संग करै न पारभेॅ
मोॅन बिगड़थों तैयोॅ केकरा, वहाँ तों डॉटै पारभेॅ!
यहाँ तोरोॅ अधिकार चलै छौं,
वहाँ बहू केॅ चलथौं,
ई अधिकार-परस्ती काकी
मन से कबेॅ निकलथौं,

बेटा साथें नै जाय छोॅ केन्हेॅ
काकी, तोंय कानै छोॅ कैन्हेॅ?