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रात / जटाधर दुबे

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सुरज डुबलै, साँझ अइलै
अन्हारोॅ के मलकैन आबेॅ रात अइली छै,
रात दिवाली साथोॅ में लानलेॅ छै
सरंगोॅ में जललोॅ छै तारा रोॅ दीया।

रात रानी के घरोॅ रोॅ शोभा
सुन्नर छै अति सुन्नर लोभै छै मनोॅ केॅ,
रात रोॅ नाथ जबेॅ आबै छै ऐन्हाँ में
चार चान लागी जाय छै देहोॅ के रोयां-रोयाँ में।

फैलाबै छै रात रानी आपनोॅ चादर
सभ्भै के देहोॅ पर राखी केॅ सादर,
सपना के देशें बोलैनेॅ छै हमरा
मिट्ठोॅ-मिट्ठोॅ सपना देखैतै।

मेघा खेलै छै रात रानी के घरोॅ में
आँख मिचौनी खेलै छै रात भर,
ओकरोॅ साथी बनी केॅ अइलोॅ छै
मिट्ठोॅ-मिट्ठोॅ हवा भी साथोॅ में लानलेॅ छै।

मन्द-मन्द सुगंध भरलोॅ हवा चली रहलोॅ छै
हमरा हृदय केॅ हरतें, मुग्ध करतें
चानोॅ से छै रात के देह सुन्नर
चमकै छै सोना नांकी
आलोकित छै कोना-कोना।