भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अज्ञानता / जटाधर दुबे
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:53, 25 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जटाधर दुबे |अनुवादक= |संग्रह=ऐंगन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हम्में स्वयं में पूर्ण छेलियै
परन्तु तोरा देखी केॅ
एक नै भरै वाला
खालीपन हृदय में
उभरी केॅ आबी गेलोॅ छै
नै कहेॅ सकौं
कमी की छेलै वहाँ पर
मतुर
जबेॅ भी हम्में
तोरा नगीच आवै छी
संतोष मिलै छै
आत्मा केॅ भी
आरो मनोॅ केॅ भी
आरो पूर्णता
लौटी आवै छै।