शाषक / रणवीर सिंह दहिया
जनता नै दुखी करकै ना कोए शाषक सुखी रह पाया॥
जनता का राज जनता द्वारा जनता ताहिं गया बताया॥
सिस्टम व्यक्ति पर भारी बहुत देर मैं समझ पाते हैं
कहीं खरीद फरोख्त कहीं डर का रोब ख़ूब जमाते हैं
चित बी मेरी पिट बी मेरी आम आदमी मरते जाते हैं
हमारी मेहनत की शाषक हर तरह से लूट मचाते हैं
जनता और शाषक के बीच वर्ग संघर्ष मूल जताया॥
यो समझे बिना ईमान दार घणा कुछ नहीं कर पावै
चाहे तो पी एम बणाद्याँ आख़िर कठपुतली बण जावै
सिस्टम के हाथ बहोत सैं संस्कृति इसका साथ निभावै
म्हारी सोच गुलामी की यही सिस्टम कई तरियाँ बनावै
सिस्टम बदलें बिन जनता का जनता नै राज ना थ्याया॥
शाषक बांट कर हमें अपनी मनमानी ख़ूब चलावैं देखो
दस नब्बै की लड़ाई आज ख़ास तरियाँ ये छिपावैं देखो
दस की करकै सही पिछाण नब्बै ना एकता बनावैं देखो
दस की एकता घणी कसूती जात गोत पै वे लडावैं देखो
खेत खान मैं हम कमाते फेर बी सांस चैन का ना आया॥
ये जेब कतरे धर्मात्मा बणकै पूरे देष मैं छाये देखो
ये भाषा जनता की बोलते जनता के भूत बनाये देखो
ये मुखौटे बदल-बदल कै हर पांच साल मैं आये देखो
ये अपने पेट फुलागे रै म्हंगाई नै उधम मचाये देखो
रणबीर नब्बै की खातर सोच समझ कै जिकर सुणाया॥