भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चुप्प के बादल विस्थापित होंगे एकदिन / अरविन्द श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:23, 28 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविन्द श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारी ख़ामोशी को ईश्वर ने अस्वीकार कर दिया है
वे किसी नियति को म्लान होते नहीं देख सकते
मार्च और अप्रैल में चाँद धरती के करीब होगा
इस उम्मीद को भी उसने खारिज़ कर दिया है
मेरी कठोर तपस्या पर मुझे भरोसा है
एक उद्दीप्त आत्मा तुम्हारे आसपास मडराती है
यादों की आँच में चटक रहे हैं सपने
एकदिन चुप्प के बादल विस्थापित होंगे
हमें मालूम नहीं
एक पंगु अभिव्यक्ति के सिवाय
और क्या बचा है
इस किराए के घर में !