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पोता हमरोॅ खेलै छै (कविता) / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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पोता हमरोॅ खेलै छै
तोता रं टप-टप बोलै छै।

शिपू छेकै ओकरोॅ नाम
खेलै के खाली ओकरोॅ काम,
पढ़ै-लिखै में माथोॅ दुखै
केना की होतै हो सीताराम।
निडर देखोॅ कŸोॅ उछलै छै,
पोता हमरोॅ खेलै छै।
गावै छै हरदम फ़िल्मी गाना
गढ़ै गीत मारै छै ताना,
ताली पीटै खलखल हाँसै
दादा तोंय छोॅ बहुत सयाना।
गुड़झिलिया लेली मचलै छै,
पोता हमरोॅ खेलै छै।

एक नंबर के छै मथभुक्कोॅ
चाहै तोहें कŸाोॅ बक्कोॅ,
जे मन होतै, वहेॅ करतै
बोलै, दादा तोंही पढ़ोॅ-लिखोॅ।
हाँसै बोलै, दाँत बिदोड़ै छै,
पोता हमरोॅ खेलै छै।
करिया केश घुंघराला छै
गोरोॅ रूप रिझावै वाला छै,
मनरग्गी अपनोॅ मन के राजा
खेलै खेल निराला छै।
दादा के मन बौरेलै छै,
पोता हमरोॅ खेलै छै।