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अगहन के महीना ऐलोॅ छै / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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अगहन के महीना एैलोॅ छै
रोइयाँ भुटकी रहलोॅ छै
दादी बोरसी लैकेॅ बैठलोॅ छै
राजा रानी रो किस्सा उठलोॅ छै,
घूर घेरी केॅ छै बैठलोॅ सब बुतरू
सांझोॅ ठारोॅ से धुधियैलोॅ छै।
अगहन के महीना एैलोॅ छै।

नरूवा रो बिछलोॅ गरम बिछौना
नै चलतै ठारोॅ रो जादू-टोना
घूर छोड़ी कोय कांहूँ नै हटकै
थकलोॅ मन लेॅ आगिन सोना
नरूआ सौसे घर छिरियैलोॅ छै
अगहन के महीना एैलोॅ छै।

मुड़गुनिया मारी खेलै छै सब बुतरू
कोय सीटी मारै कोय फूंकै छै तुतरू
चुल्हा पर लहकै नरूवा रो आगिन
माड़-भात के आशा में कानै छै मटरू
मैय्योॅ के कलछुल तेजी में चललोॅ छै।
अगहन के महीना एैलोॅ छै।