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वीर बालक भरत / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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केकरा डरें शेरनी भागै,
बोले बुतरू के ऊ छेलै?

पढ़ै-लिखै में सीताराम,
तोंय की जानेॅ हुनकोॅ नाम।

तोरे नांकी ऊ बुतरू छेलै,
वीर बहादुर अतन्है छेलै।

शेरनी रो बच्चा छीनी केॅ,
ओकरैह साथें खेलै छेलै।

गुर्रावै, बच्चा लेॅ हकरै शेरनी,
डर नै ओकरा आँखी में छेलै।
बोले बुतरू के ऊ छेलै?

सुनें बुतरू सब, जानी लेॅ,
डर नै ओकरा छेलै मानी लेॅ।

मैय्योॅ लुग ऐलै जब ऊ वीर,
माय कहलकै छोड़ै लेॅ।

केकरोॅ तेॅ ऊ बच्चे छेकै,
माय तेॅ आख़िर माइयै छेकै।

खड़ी सिंहनी ऊ जे समना में,
आँखी लोर गिरै जे ममता छेकै।

माय के बातोॅ केॅ मानी केॅ
शिशु, सिंहनी के वें छोड़ी देलकै।

वीर शिशु ऊ शकुंतला के बंटा छेलै,
राजा दुश्यंतोॅ के बांका छोरा छेलै।

भरत रहै वै बालक के नाम,
बहुत करलकै वें पुण्योॅ के काम।

जन-जन में खुशयाली छेलै
जन मन छेलै अतन्हें हर्ष,

भरत नाम पर ही रखलोॅ गेलै
यै देशोॅ के नामोॅ भारतवर्ष।