भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कारोॅ-कारोॅ मेघा साथें / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:58, 28 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध प्रसाद विमल |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कारोॅ कारोॅ मेघा साथें,
आवी गेलै वरसा रानी।
बिजली चमकै, ठनका ठनकै
कखनूं कखनूं बदरा हुमकै,
वरसा पानी भिंजलै मांटी
सौन्होॅ-सौन्होॅ गमगम गमकै।
कŸोॅ रूप सुहानोॅ लागै
झमकी झमझम बरसै पानी,
कारोॅ कारोॅ मेघा साथें
आवी गेलै वरसा रानी।
मटरा, सुटरा उछलै कूदै
आगू पीछू दौड़े फानै,
भिंजलोॅ तीतलोॅ खाली देहें
लटसट कादोॅ हाथें रगदै,
बहुते बादें झुनकी एैली
मुनिया साथें छाता-तानी,
आवी गेलै वरसा रानी।
कखनूं कारो कखनूं उजरोॅ
पल पल बदरा रंग बदलै छै,
मन मयूर नाचै छै सगरोॅ
भींजै बुतरू, हाँसै खेलै छै,
खड़ोॅ खेत के बान्है ले दौड़लै
बाबू छोड़ी के बबूआनी,
आवी गेलै वरषा रानी।