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फूल / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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कŸोॅ सुन्दर लागै छै फूल
हाँसै आरो हँसावै फूल

वन-उपवन सगरो खिलै फूल
खिलखिल ख़ुशी लुटावै फूल

धरती रो सिंगार छेकै ई
बच्चा मन मनुहार छेकै ई

भौंरा के छेकै ई गुन-गुन गान
रस होय छै एकरो अमृत समान

देवोॅ माथा पर चढ़ै फूल
सुंदरी गला वरमाला फूल

लाशोॅ पर भी सजै फूल
शिव माथा पर भी चढ़ै फूल

छै कली-कली सुरभित उदार
फूलोॅ से ही मधुमय संसार