भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सावन छै मनभावन / मुकेश कुमार यादव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:40, 30 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश कुमार यादव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सावन छै मनभावन।
मांटी-कादो बिछावन।
कोठी सानी।
टप-टप चुवै दिनभर पानी।
भींगलै सुखलो जलावन।
सावन छै मनभावन।
फिसिर-फिसिर बूंद गिरै।
मोती चारों ओर झरै।
हरियाली वन-वन फिरै।
लागै बड़ी सुहावन।
सावन छै मनभावन।
बुतरु बच्चा जाय छै पिछड़ी।
माय-बाप से जेनै बिछड़ी।
छपर-छपर खेल करै।
पानी कीचड़ मेल करै।
भेलै रूप लुभावन।
सावन छै मनभावन।
रिमझिम बादल
बरसै पागल
नया-नया नट-खेल करै।
दुखिया घर उखेल करै।
ऐतै जखनी साजन।
सावन छै मनभावन।