हे शरद तोय जल्दी आबो / मुकेश कुमार यादव
हे शरद तोय जल्दी आबो।
गर्मी दूर भगाबो।
पानी-पसीना-बाढ़-सुखाड़।
सावन-भादो पूरे आषाढ़।
हमरा नञ् सताबो।
हे शरद तोय जल्दी आबो।
सर्दी शीत प्रीत जगाबै।
आस मिलन के गीत सुनाबै।
सबके मन के भावै।
हमरो दिल जोड़ाबो।
हे शरद तोय जल्दी आबो।
पसीना से लथ-पथ।
दिन भर धत-पथ।
आराम नञ् कोनो वक़्त।
ऐतना नञ् सताबो।
हे शरद तोय जल्दी आबो।
घर-ऐंगना-द्वारी।
सगरे पैर पसारी।
आबै बारी-बारी।
आंधी-तूफान-पानी।
हेकरा ज़रा समझाबो।
हे शरद तोय जल्दी आबो।
सभ्भे लोग घरै समाय।
ओढ़ै चादर-कंबल-रजाय।
साथ बैठी चारों भाय।
हौ दिन देखाबो।
हे शरद तोय जल्दी आबो।
रसिया-पिठ्ठो खाय के मन।
बाहर घूमै जाय के मन।
सरसौ साग मोहै मन।
लाल गुलाब सोहै वन।
आँखी सब देखाबो।
हे शरद तोय जल्दी आबो।
सूना लागै छै आकाश।
कोय नञ् आस-पास।
मन बड़ी रहै उदास।
धूप-बतास।
केनौं के हटाबो।
हे शरद तोय जल्दी आबो।
पसीना चलै बेहिसाब।
कहै छियौं राफ-साफ।
शीत लहर चलाबो।
हे शरद तोय जल्दी आबो।