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ऋतु हेमंत के अलग खुमारी / मुकेश कुमार यादव

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ऋतु हेमंत के अलग खुमारी।
धान सुखै छै ऐंगना खमारी।
सगरे खेत-खलिहान।
पसरलो छै धान।
रोज सांझ-विहान।
करै काम किसान।
महकै दुनियाँ सारी।
ऋतु हेमंत के अलग खुमारी।
समय-समय के बात।
आधी-आधी रात।
दोनों प्राणी।
सबकुछ जानी।
धान करै छै तैयारी।
ऋतु हेमंत के अलग खुमारी।
दोनों शाम खाना खाय छै।
सब कोय मनमाना खाय छै।
गरीब-अमीर।
रसिया खीर।
खाय छै बारी-बारी।
ऋतु हेमंत के अलग खुमारी।
दुखिया के दिन भेलै पार।
घर ऐलो छै ख़ुशी अपार।
याद करी दुःख घड़ी।
बेचारी रो आँख भरी।
मन करै छै भारी।
ऋतु हेमंत के अलग खुमारी।
अंग-अंग उमंग बसै छै।
प्रीत पिया के संग बसै छै।
कजरा-गजरा।
हजार नखरा।
सबकुछ देलयै वारी।
ऋतु हेमंत के अलग खुमारी।
अगहन-पूस।
केतना खुश।
कहाँ मिलै छै कोय मनहूस।
पूस रो रात।
अलगे बात।
हल्कू कंबल तोसक कीनै पत्नी कीनै साड़ी।
ऋतु हेमंत के अलग खुमारी।