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गंदगी करै दूर / मुकेश कुमार यादव

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सरंग रो धूप।
घरे-घर नलकूप।
ठंडा लागै ख़ूब।
हवा बहै तूफानी।
वृक्ष पत्ता हानि।
माघ मेघ पानी।
अनोखा भविष्य वाणी।
बरसै गरजै ज़रूर।
शिशिर ऋतु में प्रकृति।
गंदगी करै दूर।
साल में एकबार।
सजीधजी होय छै तैयार।
मिलतै प्यार।
अबकी बार।
राजा रानी।
नया कहानी।
भूली गेलै बात पुरानी।
याद ऐलै रात सुहानी।
स्वागत करतै।
दिनभर रहतै।
अबकी हमरो हूजूर।
शिशिर ऋतु में प्रकृति।
गंदगी करै दूर।
साफ-सुथरा निखरलो।
हिन्ने-हुन्ने गंदगी पसरलो।
जेना तेना बिखलो।
छितरलो।
हटाना छै ज़रूर।
शिशिर ऋतु में प्रकृति।
गंदगी करै दूर।
पंछी के नया नीड़।
नया आशियाना नया भीड़।
नया सखुवा शीशम चीड़।
नया-नया सूरूर।
शिशिर ऋतु में प्रकृति।
गंदगी करै दूर।
ऋतुराज वसंत लेली।
पशु, पक्षी, वृक्ष सहेली।
करी अठखेली।
बड़ी अलबेली।
नाज नवेली।
नखरा करै भरपूर।
शिशिर ऋतु में प्रकृति।
गंदगी करै दूर।