Last modified on 31 मार्च 2021, at 00:01

स्त्री व पानी / कविता भट्ट

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:01, 31 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


कितनी समानता है- स्त्री व पानी में
दोनों तरल, नर्म और आकारहीन हैं।

ढल जाते हैं प्रत्येक निर्धारित साँचे में,
निरपेक्ष बुझाते प्यास, विकारहीन हैं।

खींचते लकीरें जब बहें प्रबल धार में।
पत्थर चीरें, लोग कहते संस्कारहीन हैं।

रस-छन्द-अलंकार-व्याकरण है इनमें
छले जाते; किन्तु दोनों व्यापारहीन हैं।
( विश्व जल दिवस ,22 मार्च, 201)