भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कलाकार से / मोहन अम्बर

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:26, 1 अप्रैल 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन अम्बर |अनुवादक= |संग्रह=आस-पा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अलगोजे वाले बजा फिर अलगोजे पर धुन,
अलगोजे पर धुन, बजा फिर अलगोजे पर धुन। अलगोजे वाले
पनघट तुझको पायल दे दे, नदिया दे-दे झाझें
मस्ती तुझको दे घरवाली, आँज नयन में साँझंे
ताल तलैया चरण धुलाएँ मलय पवन मनुहारे,
रूप-राग पर बेसुध होकर भूले आँगन द्वारे,
गेहूँ गमके, सरसों चमके, तेरी धुन को सुन
अलगोजे वाले बजा फिर अलगोजे पर धुन।
तूने कभी बजाया था अलगोजा पूरे मन से
उसके स्वर सरगम आते हैं अब तक वन उपवन से
तेरी नक़ल करी कोयल ने पतझर भी भरमाया
वह पगडण्डी पंथ बनी तू जिस पगडण्डी आया
तूने सावन रूलवाये तो नचवाये फागुन
अलगोजे वाले बजा फिर अलगोजे पर धुन।
घुटनों में माथा रक्खे तू क्यों बैठा है भाई
तेरी धुन तो जड़-चेतन क्या सपनों ने दुहराई
ऐसा बजा कि मिट्टी अपनी मूरत बनवा बैठे
पूजा के पावन गीतों को फिर कविता गा बैठे
ले सँभाल जीवन अलगोजा लगे न इसको घुन
अलगोजे वाले, बजा फिर अलगोजे पर धुन।
हाट बजारों चौराहों में ऐसी गूँज गुँजा दे
उसको बोझा लगे न जो चलता हो बोझा लादे
खड़ी फ़सल बेटी किसान की उसे न कोई लूटे
और ब्याज में कहीं किसी बगिया का फूल न टूटे
गाँव-शहर में फैला अवगुन गिनगिन कर तू चुन
अनगोजे वाले बजा फिर अलगोजे पर धुन।