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निवेदन (कविता) / मोहन अम्बर

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माना आज मशीनी युग में, समय बहुत महँगा है लेकिन,
तुम थोड़ा अवकाश निकालो, तुमसे दो बातें करनी हैं।
उम्र बहुत बाक़ी है लेकिन, उम्र बहुत छोटी भी तो है,
एक स्वप्न मोती का है तो, एक स्वप्न रोटी भी तो है,
घुटनों में माथा रखने से, पोखर पार नहीं होता है,
सोया हो विश्वास जगा लो, दुख वाली नदियाँ तरनी है,
तुम थोड़ा अवकाश निकालो, तुमसे दो बातें करनी है।
सूरज जैसा व्यापारी भी, आज मुनाफे का कायल है,
कहीं कहीं पर उगी न फसलें, कहीं-कहीं पर जल ही जल है,
तुमसे यह उम्मीद नहीं थी, इसी लिए लिखता हूँ सूरज,
तुम अपना आकाश सँभालो, बहुत-बहुत प्यासी धरती है,
तुम थोड़ा अवकाश निकालो, तुमसे दो बातें करनी है।
मन छोटा करने से मोटा काम नहीं छोटा होता है,
नेह कोष को तुल कर बाँटो, कभी नहीं टोटा होता है,
आंसू वाला अर्थ न समझे तो सब ज्ञान व्यर्थ जाएँगे,
मत सच को निश्वास दबाओ, शाश्वत आग नहीं भरनी है,
तुम थोड़ा अवकाश निकालो, तुमसे दो बातें करनी हैं।