Last modified on 2 अप्रैल 2021, at 23:05

पूरी कहां होती है हसरत दोस्तों / सुजीत कुमार 'पप्पू'

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:05, 2 अप्रैल 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुजीत कुमार 'पप्पू' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पूरी कहाँ होती है हसरत दोस्तों,
सबको नहीं मिलती है शोहरत दोस्तों।

दिन-रात करते हैं जतन फिर भी देखो,
आती न सबके पास दौलत दोस्तों।

यों हाथ मल-मल के चले जाते बहुत,
मिलती नहीं आसान इज़्ज़त दोस्तों।

मौसम बदलते हैं मगर आदत नहीं,
क्यूं है बला इंसानी फ़ितरत दोस्तों।

अंतर है सूरत और सीरत में बहुत,
दो चेहरे हैं एक मूरत दोस्तों।