भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विश्वासदे! / रामकृपाल गुप्ता

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:05, 3 अप्रैल 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकृपाल गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वन का नीरव एकान्त अरी री कली
भला काँटो की डाली पर
मुसुकाती ही जाती क्यों पगली
सौरभ में निज उल्लास मिला
दो घूँट पिला दे साकी
जीवन जग का विश्वास
मुझे भी ता सिखला दे साकी
मैं व्यथाभरी साँसों में
दुख-द्वन्द्व निराशा-आशा के पाशों में
चिर अजर अमर जीवन के
चिर सुख चिर स्पन्दन के
मोती दो-चार पिरो लूँ
मन की कल्पना धरा के
अमृत में निर्बाध डूबो लूँ
तुझ-सा ही झंझा के पेंगों पर झूलूँ।