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जो मिलना है मिल जाता है / जतिंदर शारदा

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जो मिलना है मिल जाता है
क्यों अपना मन भटकाता है

पहले ख़ुद जलता है दीपक
पुनः रोशनी फैलाता है

ठोकर खाकर ही जीवन में
व्यक्ति को जीना आता है

एक द्वार बंध होता है
कहीं दूसरा खुल जाता है

एक दिशा चुन ले मन मेरे
उहापोह ही भरमाता है

सच्चे मन से यदि पूछोगे
प्रश्नों का उत्तर आता है