वीरता संघर्ष की पहचान है
जलता दीपक रात्रि का दिनमान है
प्रीत को मिलता सदा अपमान है
रूप तो निर्दोष है अनजान है
ढूँढते फिरते हो क्यों भगवान को
सृष्टि के कण-कण में हो भगवान है
कामनाएँ मनुज को निर्धन करें
संतोष धन मिल जाए तो धनवान है
लाख खुशियाँ हों मगर तेरे बगैर
यह जगत मेरे लिए वीरान है
देखकर विकसित सुमन ऐसे लगा
आपकी मनहर मधुर मुस्कान है
हो गई है अब अपावन चांदनी
चांद छूकर आ गया इन्सान है
कौन-सा मग ज़िन्दगी में स' रल है
कौन से मग में नहीं व्यवधान है
कोई कहता है कि शंकर रूप है
कोई कहता है कि यह पाषाण है
सुमन तो शृंगार कुछ करता नहीं
सादगी सौंदर्य की पहचान है