Last modified on 15 अप्रैल 2021, at 07:18

नीर लगा उफनाने / रामकिशोर दाहिया

डा० जगदीश व्योम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:18, 15 अप्रैल 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आग जलाये
बैठा तल है
गुड़ की खीर बनाने
हांँडी बांँध
नदी खौलाये
नीर लगा उफनाने।

सोन-रेत को
कूल छानकर
पुरहर हुए धनी
महानदी
कछरों में रहती
दिनभर बनी-ठनी

सुबह चाय में
केक बोरकर
लगी धूप में खाने।

पेट बांँध का
पैदा करता
फसलें सोन मछरियांँ
जल की उठापटक
चमकाती
छत, छानी, झोपड़ियांँ

खुले कंठ से
नहर खेत में
छेड़े राग तराने।

पानी से पुल
खुद को तोपे
ठहरी सड़क खड़ी
नाव डूबकर
दृश्य देखती
लापरवाह बड़ी

ठेक लगाकर
धार चली है
ऊपर गांँव उठाने।