Last modified on 19 अप्रैल 2021, at 16:01

तीर हैं तराने हैं / रामकिशोर दाहिया

डा० जगदीश व्योम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:01, 19 अप्रैल 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

 छोरी हैं छोरे हैं
आम के टिकोरे हैं
मारकर लबेदों से
चुकनी भर झोरे हैं
छील रहे
छिलनी नाखून में
चटकारे लेते
लार भरे नून में।

भाव मिले घोड़े हैं
दौड़ते निगोड़े हैं
इक दूजे लड़ने को
भिड़ने को थोड़े हैं
मिलते हैं
एक घरी जून में
चटकारे लेते
लार भरे नून में।

मस्ती में डूबे हैं
घर से भी ऊबे हैं
जब देखो पढ़ना है
कैसे मनसूबे हैं
बचपना
बीतेगा जुनून में
चटकारे लेते
लार भरे नून में।

तीर हैं तराने हैं
खेल में लुभाने हैं
टेर रही अम्मा के
पास नहीं आने हैं
दौड़ रही
अमराई खून में
चटकारे लेते
लार भरे नून में।

-रामकिशोर दाहिया