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चित्रलिखित मुस्कान सजी है चेहरों पर / जहीर कुरैशी
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चित्रलिखित मुस्कान सजी है चेहरों पर,
मुस्कानों की ?सेल? लगी है चेहरों पर ।
शहरों में, चेहरों पर भाव नहीं मिलते,
भाव-हीनता ही पसरी है चेहरों पर ।
लोग दूसरों की तुक-तान नहीं सुनते,
अपना राग, अपनी डफली है चेहरों पर ।
दोस्त ठहाकों की भाषा ही भूल गए,
एक खोखली हँसी लदी है चेहरों पर ।
लोगों ने जो भाव छिपाए थे मन में,
उन सब भावों की चुगली है चेहरों पर ।
मीठे पानी वाली नदियाँ सूख गई,
खारे पानी की नद्दी है चेहरों पर ।
एक गैर-मौखिक भाषा है बहुत मुखर,
शब्दों की भाषा गूँगी है चेहरों पर ।