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पोलपट्टी राजपथ की खुल गई है / ओम निश्चल

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चौपदियाँ

शहर को मक़तल बनाया जा रहा है,
चैनलों पर मुँह छिपाया जा रहा है,
हर मुखर आवाज़ पर पहरे लगे हैं,
स्वाभिमानी स्वर दबाया जा रहा है ।

इस महामारी में कलई खुल गई है,
पोलपट्टी राजपथ की खुल गई है,
वह संभल कर भले चालें चल रहा है,
उसकी मक्कारी हवा में घुल गई है ।

वह बताता है कि वह निर्दोष है,
जब कि जनता में निहायत रोष है,
श्मशानों में लगी लम्बीै कतारें,
बोलता वह : 'केन्द्र का यह दोष है' ।

वह तथागत की तरह है बोलता,
शब्दा को कितनी तरह से तोलता,
देखकर वह नब्ज़ पहले देश की,
हवा में बारूद फिर वह घोलता ।

हर तरफ देखो उदासी बढ़ रही,
मृत्‍यु अपना रोज़ रूपक गढ़ रही,
एक बच्चे के लिए पर माँ अभी,
ज़िन्दगी का पाठ फिर से पढ़ रही ।

वह अचानक ऋषि हुआ जाता दिखे,
बोल में कारुण्य उपजाता दिखे,
इन दिनों उसका है सच से सामना,
मौत के रथ सामने आते दिखे ।

ज़िन्‍दगी अब ऊब का साम्राज्य है,
क्षुद्रताएँ सच कहो अब त्याज्य हैं,
मृत्यु से बेखौफ़ लेकिन बिल्‍लियाँ,
चीख़ में डूबा हुआ गणराज्य है ।

उसकी आँखों में व्यथा का ज्वा‍र है,
पर विमुख लगता सकल संसार है,
ले रहा है आख़िरी सांसें मनुज,
किन्तु दुनिया दिख रही लाचार है ।

चैनलों पर बहस है औ’ शोर है,
चुनावी परिणाम की यह भोर है,
विजय के उन्माद में है दब गया,
करुण क्रन्दन सिसकियों का रोर है ।

अब उठो, जागो, भरत के वीर पुत्रो !
देश की हालत बहुत गम्भीर, पुत्रो !
कब तलक प्रारब्ध को तुम दोष दोगे,
उठो, सम्हलो, देश हित में, वीर पुत्रो !