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हाइकु / भगवत शरण अग्रवाल / कविता भट्ट

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1
करना पड़ा
जो जीवन का सौदा-
तुम्हें माँगूँगा।

कन्न पड़लू
जु जीवन कु सौदा
तुम माँगलू
2
वर्षा में नहा
तुम ऐसे मुस्काए
फूल लजाए।

बर्खा माँ नह्ये
तुम इन हौंसिन
फूल सरमैं
3
बौराए आम
स्वप्नों तक पहुँची
स्मृति-सुवास।

बौळयें आम
स्वीणौ तक पौंछिन
खुदै खुसबो
4
तुम्हारे बिना
दीवारें हैं, छत है
घर कहाँ है?

त्यारा बिना त
दिवाल-छत्त छन
घौर कख छ
5
मेरे घर में
छ: जने, चार दिशा
नभ और मैं।

म्यारा घौर माँ
छै झणा चार दिसा
आगास-र-मि
6
स्वप्न में जाग
जीत लिया संसार
फिर सो गए।

स्वीणा माँ बिजी
जित्याली यू संसार
फीर से गेन
7
कौन–-सा राग
टीन की छत पर
बजाती बर्षा।

झणी कु राग
टीनै कि छत्त परैं
बजौन्दी बर्खा
8
वर्षा की रात
बतियाते मेंढक
चाय पकौड़ी।

बर्खा कि रात
छ्वीं लगाँदा मेंडगा
चा-पक्वड़ी सी
9
सावन भादों
दिन देखें न रात
यादों के मेघ।

सौंण-र-भादौं
नि देख्दा दिन-रात
खुदा बादळ
10
बूँद में समा
सागर और सूर्य
हवा ले उड़ी।
बुंद माँ समै
समोदर-सुर्ज द्वी
बथौं ली उड़ी
11
लू से झुलसी
जेठ की दुपहरी
कराहे पंखे।

लू न झुलसी
जेटै कि द्वफरा माँ
पंखा कणैन
12
माँगूँ भी तो क्या
सभी तो क्षणिक है
तुम्हें माँग लूँ।

माँगौं बी त क्य
सौब त च क्षणिक
त्वे माँगी ल्यौं