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हाइकु / सुदर्शन रत्नाकर / कविता भट्ट

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1
स्वर्ण कलश
सजा आसमान में
भोर हुई तो।

सोना कु घौड़ू
सजी ग्याई द्योरा माँ
बिन्सरी ह्वे त
2
चाँदनी रात
खिली मधुमालती
दूध-केसर।

जुनाळि रात
खिली मधुमाळती
दूध -केसर
3
तुहिन कण
गिरते दूब पर
ज्यों मोती बन।

ओंसा क बुन्द
दुबला माँ पड़िन
मोती बणिन
4
ताल सज़ा है
खिले लाल कमल
छुपा है जल।

ताल सज्यूँ च
खिल्यन लाल कौंळ
लुक्यूँ च पाणी
5
अम्बर थाल
ओढ़े चाँदनी शाल
धरा मुस्काई।

द्योरै थकुली
ओढ़ि जुनाळि पाँख्लु
पिर्थी हैंसी गे
6
रात रोई थी
धरती ने समेटे
उसके आँसू।

रात रूणि छै
पिर्थी न समोख्यन
वीं का इ आँसु
7
रास्ता है देती
दूब सिर झुकाती
मिट न पाती।

बाठु च देणु
दुब्लू सीस झुकौंदु
मिटदु नि च
8
धरा ने ओढ़ी
ज्यों पीली चुनरिया
सरसों खिली।

पिर्थी न ओढ़ि
जन पिंगळी चुन्नी
लय्या खिली गे
9
धूप ज्यों सोना
खिला अमलतास
मेरे अँगना।

घाम सोनु सि
खिली अमलतास
म्यारा चौक माँ
10
चुप खड़े हैं।
ढाक-अमलतास
रोके ज्यों साँस।

चुप्प खड़न
पलास अमल्तास
रोकी कैं साँस
11
सिन्धु लहरें
करें अठखेलियाँ
चाँद बुलाए

समोद्री लैर
कन्नीन खेल बोल
जून बुलौणि।
12
सागर जल
दूर तक विस्तार
फिर भी प्यास।

समोद्र पाणी
दूर तकैं फैलास
फीर बी तीस
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