भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सभ्य व्यक्ति / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:10, 20 मई 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कविता भट्ट }} {{KKCatGadhwaliRachna}} <poem> किसी प्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसी प्रियजन की मृत्यु पर
था वह बहुत ही दुःखी
न जाने क्यों रो रहा था
जबकि उसके भीतर
सुबह से शाम
और शाम से सुबह तक
मरता है एक व्यक्ति प्रति पल
जो उसे सबसे अधिक प्रिय होता है
किन्तु वह मन में ही रोता है
बाहर से मजबूत होकर सभ्य व्यक्ति
जीवित होने का ढोंग करता है
है न बहुत बड़ा आश्चर्य
-0-